Monday 26 September 2016

तुम्हारा साथ


            

              तुम्हारा साथ  .. 


चित्र - गूगल साभार 

तुम्हारा साथ है तो ऐसा लगता है,
जैसे ठिठुरती रात में अलाव की तपिश ,,
जैसे आभूषणों के ढेर में स्वर्ण की कनिष्क ,,

तुम्हारा साथ है तो ऐसा लगता है,
जैसे ओस से भींगे दूब पर नंगे पाँव चलना,,
जैसे पतझड  के बाद नए पतों का निकलना ,,

तुम्हारा साथ है तो ऐसा लगता है,
जैसे ठण्ड के दिनों में निकली मीठी सी धूप ,,
जैसे बगीचे के पौधों में खिला हुआ फूल का रूप ,,

तुम्हारा साथ है तो कुछ ऐसा लगता है,
जैसे सभी आजाद हैं और न रही कोई बंदगी ,,
जैसे तुम्हे पाने से खुशियों से भर गई जिंदगी ,,,


Thursday 21 August 2014

अपना आशियाँ . . . . .

 

       अपना आशियाँ . . . . . 



चित्र गूगल साभार 



थोड़ी सी जमीं  ,
थोड़ा  आसमाँ ,
तिनकों का बस ,
अपना ये जहाँ। 

मेरे आँगन में होगा ,
छोटा सा एक झूला ,
सौंधी मिट्टी की खुसबू वाला ,
लिपा एक चूल्हा। 

मैंने जो चाहा है वो ,
ज्यादा तो नहीं ,
नहीं पूरा होने वाला ,
वादा तो नहीं। 

थोड़ी सी जमीं  ,
थोड़ा  आसमाँ ,
तिनकों का बस ,
अपना ये जहाँ।

तेरी यादें


   तेरी यादें . . .

चित्र गूगल साभार


देख तेरी यादें मुझे कैसे, सता रही है,
भूलना चाहता हूँ पर, तु याद आ रही है..

आँखे बंद करूँ, तो भी नजर आ रही है,
जिन्दगी के अनमोल पल, तु बनते जा रही है..

कभी कभी लगता है, तु मेरे पास आ रही है,
आकर के हमारी दुनिया को, अपने हाथों से सजा रही है..

तु ही तु है बस, मेरी तो दुनिया तुही है,
तेरी भी मंजिल हूँ मैं न जाने तु कहाँ जा रही है..

दर्द तो तेरे दिल में भी, होता हो होगा,
तु उसे सपने दिखाकर क्यों बहला रही है..

मिले फुर्सत तुम्हें तो, एक बार लौट आना,
तुझ बिन तो शायद अब मेरी जान भी जा रही है..

देख तेरी यादें मुझे कैसे, सता रही है,
भूलना चाहता हु पर, तु याद आ रही है..

Thursday 24 July 2014

एक गरीब औरत . . .

एक गरीब औरत . . .

चित्र गूगल साभार
भूख डाइन सी झपट्टे मारते गुर्रा रही है,
एक औरत बुझ रही सी, आग को सुलगा रही है..

सिर पे बोझा, पीठ पे बच्चे को बांधे जा रही है,
जिन्दगी की जंग में, वह हर घड़ी टकड़ा रही है..

भूख, रोटी, भात, बच्चे, मर्द दुनिया उसकी यही है,
कोई मंजिल नहीं है, पर आ रही है, जा रही है..

भूख से बेहाल बच्चा है, जमीं पर लोटता,
वह उसे चंदा दिखलाकर देर से बहला रही है..

शाम को फुर्सत मिली तो, गुथ रही आते सी खुद,
भूख उसको खा रही है, भूख उसको खा रही है..

भूख डाइन सी झपट्टे मरते, गुर्रा रही है,
एक औरत बुझ रही सी आग को सुलगा रही है..


Wednesday 23 July 2014

एक माँ और बेटे की कहानी . . .

एक माँ और बेटे की कहानी . . .
चित्र गूगल साभार
यह है एक माँ और बेटे की कहानी,
जिसमें एक माँ अपने बेटे को बुला रही है..
उस नन्हें जान को अपने हाथो से खिला रही है,
रात होने पर लोरी गाकर सुना रही है..

यह है एक माँ और बेटे की कहानी,
जिसमें एक माँ अपने बेटे को मना रही है..
उस नन्हें रूठे जान के लिए कमा रही है,
शाम को घर लौटते वक्त खिलौने लेकर आ रही है..

यह है एक माँ और बेटे की कहानी,
जिसमें एक माँ अपने बेटे को सजा रही है..  
उस नन्हे से जान को पढ़ा लिखा कर मजबूत बना रही है,
 आज वक्त आने पर, यह बतला रही है..

यह है एक माँ और बेटे की कहानी,
जिसमें एक माँ अपने ममता को मार रही है..
“ जा बेटे बचा ले अपनी माँ को ” सुना रही है,
जो गुनाहगारों के गुनाहों को सहते हुए कराह रही है..

यह है एक माँ और बेटे की कहानी,
जिसमें एक माँ अपने बेटे को सच की राह चला रही है..
उसके विजय पर, पहनाने को फूलों का हार बना रही है,
जल्दी लौट आने की ख़ुशी में मुस्कुरा रही है..

यह है एक माँ और बेटे की कहानी,
जिसमें एक माँ अपने बेटे को बुला रही है..